जिन्ना ने दिया था बलूचिस्तान को धोखा, कीमत चुका रहा पाकिस्तान
Balochistan : पाकिस्तान ने किया है बलूचिस्तान के साथ धोखा, कीमत चुकानी होगी
पाकिस्तान पैदा हुआ और तुरंत ही धोखेबाजी सीख ली। उसने भारत ही नहीं, बलूचिस्तान को भी धोखा दिया। उसकी आजादी छीनी। इसी वजह से बलोच गुस्से में हैं। uplive24.com पर जानिए Balochistan history।
जिन्ना ने कहा कुछ था और पाकिस्तान ने किया कुछ और। बलूचिस्तान के इतिहास (Balochistan history) में वह कहानी दर्ज है, जिसकी वजह से बलोच इतनी नफरत करते हैं पाकिस्तान से। यह इतिहास करीब 77 साल पुराना है, बंटवारे के ठीक बाद से शुरू हुआ।
भारत से ब्रिटिश साम्राज्य के हटने के समय, 560 से अधिक रियासतों के सामने एक अहम सवाल खड़ा हुआ - क्या वे स्वतंत्र रहेंगी या किसी नए राष्ट्र में विलय करेंगी? इसी संदर्भ में बलूचिस्तान का कलात राज्य भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना।
इतिहास (Balochistan history) में कलात राज्य का दर्जा भारत की अन्य रियासतों से अलग था। 1876 की संधि के तहत, ब्रिटिश हुकूमत ने कलात की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी। इसी कारण इसे नेपाल, भूटान और सिक्किम के साथ 'कैटेगरी बी' में रखा गया था, जो भारतीय विदेश विभाग के तहत आते थे।
4 अगस्त 1945 को दिल्ली में हुई राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में लॉर्ड माउंटबेटन, कलात के खान और मुहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) सहित कई अहम लोग मौजूद थे। इसमें तय किया गया कि कलात स्वतंत्र रहेगा और उसका दर्जा वही रहेगा, जो 1838 में था। 11 अगस्त 1947 को इस समझौते की आधिकारिक घोषणा हुई, जिसमें पाकिस्तान सरकार ने भी कलात को स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार किया।
15 अगस्त 1947 : कलात की आजादी की घोषणा
कलात के खान मीर अहमद खान ने 12 अगस्त 1947 को औपचारिक रूप से आजादी की घोषणा की, जो 15 अगस्त 1947 से प्रभावी हुई। इस दौरान 'गवर्नमेंट ऑफ कलात स्टेट एक्ट 1947' लागू हुआ और एक संसदीय प्रणाली बनाई गई, जिसमें दो सदन थे - दारुल अवाम (हाउस ऑफ कॉमन्स) और दारुल उमरा (हाउस ऑफ लॉर्ड्स)।
तब पाकिस्तान बना नहीं था, पर उसकी ओर से मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने समझौते पर दस्तखत किए। वहीं, कलात की ओर से सुल्तान अहमद के साइन थे। करार में कहा गया कि 'पाकिस्तान सरकार स्वीकार करती है कि कलात स्वतंत्र राज्य है।'
लेकिन पाकिस्तान (Pakistan) की नीयत जल्द ही बदलने लगी। दिसंबर 1947 में बलूचिस्तान की संसद में गौस बख्श बिजेंजो (Baba-e-Balochistan) ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर पाकिस्तान बलूचिस्तान को जबरन अपने साथ मिलाने की कोशिश करेगा, तो बलूच लोग अपने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ेंगे।
Pakistan and Jinnah : जिन्ना से इतना चिढ़ता क्यों है पाकिस्तान?
पाकिस्तान का बलपूर्वक विलय और बलूचिस्तान का संघर्ष (Balochistan history)
जनवरी 1948 में बलूचिस्तान की संसद ने पारित किया कि पाकिस्तान (Pakistan) से संबंध संप्रभु देशों के बीच होने वाली संधि के आधार पर होने चाहिए। 4 जनवरी 1948 को बलूच सरदारों ने भी इस फैसले का समर्थन किया और विलय को खारिज कर दिया।
लेकिन 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान सेना ने कलात पर हमला कर दिया। खान मीर अहमद खान को कराची ले जाया गया और जबरन पाकिस्तान के साथ विलय पर दस्तखत कराए गए। 30 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने इस विलय को आधिकारिक रूप दे दिया। हालांकि, बलूचिस्तान की विधानसभा ने इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया, और आज भी बलूच इसे अवैध मानते हैं।
मीर अहमद खान के पूर्वजों ने करीब 300 साल पहले जो राज्य बनाया था, उसकी आजादी महज 227 दिनों में खत्म हो गई। आजादी के इस छोटे से दौर में कराची में कलात का दूतावास भी खुला था। वहां कलात के राजदूत काम करते थे और वहां कलात स्टेट का झंडा भी लगा था।
जिस तरह जोर-जबरदस्ती से कलात के खान के दस्तखत लिए गए थे, वह बलूच असेंबली में किए गए फैसले से उलट था। लिहाजा पाकिस्तान में विलय को 'अवैध' माना गया और आज भी बलूच लोग ऐसा ही मानते हैं। उनका कहना है कि कलात की एसेंबली के दो सदनों को ही यह अधिकार दिया गया था कि वे विलय के बारे में फैसला करें। जबरन विलय कराने के कदम से बलूच नाराज थे और आज भी उन्होंने इसे कबूल नहीं किया है।
दशकों से जारी है विद्रोह
बलूचिस्तान का इतिहास (Balochistan history) संघर्ष से भरा हुआ है। 1948 के बाद से बलूच लोग बार-बार विद्रोह करते रहे हैं। हर बगावत पहले से बड़ी होती है और इसमें आम लोगों की भागीदारी बढ़ती जा रही है।
पहली बगावत तो कलात को पाकिस्तान में मिलाने के तुरंत बाद हुई थी। तब कलात के खान के भाई अब्दुल करीम ने झंडा बुलंद किया था। इसके बाद 1958, 1962 और 1974 से 1977 तक विद्रोह उभरे और अशांति का दौर रहा। अभी जो अशांति के हालात हैं, इसका दौर 2005 से शुरू हुआ था।
पहले के विद्रोह मुख्य रूप से कबीलाई इलाकों तक सीमित रहते थे और उनमें बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी नहीं होती थी, लेकिन आज बलूच लोगों का आंदोलन राष्ट्रीय स्वरूप ले चुका है।
चीन से नफरत
बलोच लोगों को पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि अपनी जमीन पर चीन (China-Pakistan relation) की मौजूदगी से भी सख्त ऐतराज है। चीन के CPEC को वे शक की नजरों से देखते हैं। उनका कहना है कि विदेशी उनकी जमीन पर आकर लूट मचा रहे हैं।
पाकिस्तान की मजबूरी है कि वह चीन को इनकार नहीं कर सकता। चीनी कर्ज से ही उसकी दाल-रोटी चल रही है। लेकिन स्वाभिमानी और अपनी जमीन से प्यार करने वाले बलोच लोगों को यह पसंद नहीं।
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